सीएसई के मधुमक्खी पालन क्षेत्र और बड़ी कम्पनियों के जरिए शहद मिलावट पर केन्द्रित वेबिनार में तीन सौ से अधिक मधुमक्खी पालक, उद्यमी और शहद उपभोक्ताओं ने पंजीकरण किया
शहद में मिलावट के कारण 2015 से मधुमक्खी पालक अपना पेशा और कारोबार छोड़ने पर विवश
वेबिनार में हिस्सा लेने वाले मधुमक्खी पालकों ने शहद उद्योग की चुनौतियों और ख़तरों को लेकर कई सवाल उठाए
10 दिसंबर, 2020, नई दिल्ली।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक और पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने वेबिनार का आगाज करते हुए कहा कि, ‘हम उन सभी मधुमक्खी पालकों का शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने शुद्ध शहद के नाम पर भारतीय उपभोक्ताओं को दिए जा रहे मिलावटी शहद के काले कारोबार का भंडाफोड़ करने में मदद की और हमारी आँखें खोलीं। हमारी तहक़ीक़ात मधुमक्खी पालकों की गहरी चिंताओं को भी सामने लेकर आती है। यह एक ऐसा पेशा है जो इन दिनों बेहद खतरे में है और हम सभी लोगों को इस तरफ़ ध्यान देने की जरूरत है।
शहद मिलावट के काले कारोबार के चलते मधुमक्खी पालकों की आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है। सीएसई ने इसी विषय पर 10 दिसंबर 2020 को वेबिनार का आयोजन किया जिसमें तीन सौ से अधिक मधुमक्खी पालक, उद्यमी और शहद उपभोक्ताओं ने अपनी चिंताएँ व्यक्त कीं।
एक सप्ताह पहले सीएसई के जांचकर्ताओं ने मिलावटी शहद के सुव्यवस्थित कारोबार को जगज़ाहिर किया था। उच्चस्तरीय प्रयोगशाला में नमूनों की जाँच के आधार पर सीएसई ने 13 शहद ब्रांडों में से दस ब्रांड में शुगर सीरप की मिलावट पाई थी (पूरी स्टोरी यहाँ पढ़ें ‘लिंक : https://www.cseindia.org/page/eml-laboratory)। इस जांच रिपोर्ट को अंग्रेज़ी और हिंदी माध्यम वाली ‘डाउन टू अर्थ’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
डाउन टू अर्थ पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर जांच से बचने वाली शुगर सीरप चीन से आयात की जा रही है और इसका भारत में भी निर्माण किया जा रहा है। हैरानी करने वाला यह है कि शहद में मिलावट के लिए इस्तेमाल होने वाली यह हाईटेक शुगर सीरप भारतीय प्रयोगशालाओं में पकड़ी नहीं जा सकती।
सीएसई के फ़ूड सेफ़्टी और टॉक्सिन टीम के कार्यक्रम निदेशक अमित खुराना ने कहा कि, ‘हमने देश भर के मधुमक्खी पालकों से सम्पर्क किया और पाया कि बीते कुछ वर्षों से वे अपने शहद की लागत नहीं निकाल पा रहे हैं। कुछ ने मधुमक्खी पालन के काम को छोड़ दिया और कुछ छोड़ने का इरादा कर रहे थे।जबकि कोविड 19 महामारी के दौरान शहद की खपत में ज़बरदस्त उछाल हो रही थी। हम इस असमंजस भरी स्थिति को समझना चाह रहे थे और यहीं हमने कुछ सुराग जुटाए और हमारी तहक़ीक़ात शुरू हुई।
उत्तर भारत राज्यों के कई मधुमक्खी पालकों ने सीएसई-डाउन टू अर्थ के इस तहक़ीक़ात के दौरान कहा कि, ‘वर्ष 2014-15 तक उन्हें उनके शहद की अच्छी क़ीमतें मिल रही थीं और उसके बाद से गिरावट शुरू हुई। हमें पहले जहां 150 रुपए प्रति किलो मिल रहे थे, वहीं बाद में 60 से 70 रुपए प्रति किलो ही मिलने लगे। इस कारण से शहद के कारोबार में कोई फ़ायदा नहीं बचा और हमें दूसरे कारोबार की तरफ़ मुड़ना पड़ा।
वहीं खुराना ने ये भी कहा कि सरकार ने मधुमक्खी पालन क्षेत्र को 500 करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी है उसके बावजूद मधुमक्खी पालकों को यह संघर्ष क्यों झेलना पड़ रहा है?
दरअसल सीएसई ने अपनी तहक़ीक़ात में पाया था कि शहद में ज़बरदस्त तरीक़े से शुगर सीरप का इस्तेमाल हो रहा है जो कि शुद्ध शहद के मुकाबले बेहत सस्ती पड़ती है, यही वजह है कि ज्यादातर शहद के ब्रांड जो शुगर सिरप की मिलावट कर रहे थे। जो मिलावटी शहद की वास्तविक कीमत को 53-70 रुपये प्रति किलो तक पहुंचा देती है। मिलावटी शहद की इतनी कम कीमत की वजह से असली शहद बेचने वाले मखुमक्खी पालकों को उनके शुद्ध शहद की वास्तविक कीमत नहीं मिल पाती है।
सीएसई ने यह खुलासा किया था कि फूट सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) के जुलाई 2020 में तय किए गए मानकों के आधार पर जांच में कई बेहद लोकप्रिय शहद ब्रांड प्रयोगशालाओं में जांच में पास हो गए लेकिन यही नमूने जर्मनी की प्रयोगशाला में उच्च और आधुनिक परीक्षण न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोलेंस (एनएमआर) और ट्रेस मार्कर फॉर राइस सिरप (टीएमआर) टेस्ट में फेल हो गए।
अमित खुराना ने कहा कि हमने ये भी पाया कि भारत सरकार ने अपने हालिया मानकों में निर्यात होने वाली शहद के लिए एनएमआर टेस्ट का प्रावधान किया है लेकिन एफएसएसएआई ने टीएमआर टेस्ट के प्रावधान को खत्म कर दिया है।
सीएसई की फूड सेफ्टी एंड टॉक्सिन टीम को सोनल ढींगरा ने कहा कि चीन की कंपनियां भारत में शहद में मिलावट का गंदा खेल खेल रही हैं। चीन की कंपनियां अपने ट्रेड वेबसाइट (जैसे अलीबाबा) पर शुगर सिरप की ब्रिकी कर रही हैं।
इसे फ्रक्टोज सिरप के नाम से बेचा जाता है और ये सिरप जांच से बच जाती है। पिछले कई वर्षों से ये सिरप चीन के जरिए भारत में भेजी जा रही है। इतना ही नहीं भारत में भी इसका निर्माण किया जाता है और इस सिरप को कोड वर्ड में ‘ऑल पास सिरप’ कहकर पुकारा जाता है। यह मधुमक्खी पालकों के कच्चे शहद के मुकाबले आधी कीमत पर ही उपलब्ध हो जाती है। इस शुगर सिरप की भारतीय शहद में 50 फीसदी तक की मिलावट की जाती है।
सीएसई ने वेबनार में उन चार मधुमक्खी पालकों का पैनल का हिस्सा बनाया जिन्होंने इस खतरनाक खेल को उजागर करने में मदद की। इसमें सहारनपुर स्थित एकता ग्रामोद्योग संस्थान के अध्यक्ष तंजीम अंसारी ने, भरतपुर से मधुमक्खी पालक कल्याण संघ के ओमप्रकाश चौधरी और सहारनपुर के मधुमक्खी पालक किसान अरविंद सैनी व पंजाब के प्रोग्रेसिव बी कीपर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष नरपिंदर सिंह शामिल थे।
पैनल से तंजीम अंसारी ने कहा कि परागण कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है और मधुमक्खी और उनके पालक आज पूरी तरह से हाशिए पर खड़े हैं। मधुमक्खी पालक शहद उत्पादन के लगातार घटने से निराशा का दुष्चक्र में फंसे हैं। शहद उत्पादन के लागत बढ़ रही है. मुनाफा घट रहा है। सरकार की ओर से की जानै वाली फंडिंग भी किसी काम की नहीं है और ना ही प्रभावी तरीके से मधुमक्खी पालक किसानो के लिए कोई अभ्यास या जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
वेबिनार के अंत में सुनीता नारायण ने कहा मिलावट का ये पैमाना और प्रकृति हमें कई स्तरों पर प्रभावित कर रही है। यह हमें कोविड 19 के लिए और अधिक जोखिम में डाल रही है। ये एक बड़ा कारण है जो मधुमक्खी पालकों की आजीविका को बहुत गहराई तक चोट पहुंचा रहा है। अगर हमारे पास मधुमक्खी पालन नहीं होंगे तो हमारे पास मधुमक्खियां भी नहीं होंगी और शहद भी। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि मधुमक्ख्यां हमारे लिए भोजन पैदा करती है। बिना इनके ना भोजन होगा और ना ही जीवन।
अधिक जारी और साक्षात्कार के लिए कृपया सुकन्या नायर से संपर्क करें । ईमेल sukanya.nair@cseindia.org , 8816818864
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