खनन मंत्रालय ने 2011 के अपने ’सस्टेनेबल डेवलपमेन्ट फ्रेमवर्क’ रिपोर्ट’ में स्वीकार किया कि हाल के दषकों में खनन की गतिविधियों से थोड़ा सा ही स्थानीय लाभ पहुँचा है’।1 यह कहना उचित नहीं है कि खनन गतिविधियों से स्थानीय लाभ नहीं हुआ है परन्तु दुर्भाग्यवष, देष की खनिज संपदा से सबसे समृद्ध राज्यों और जनपदों में सबसे गरीब वर्ग के लोग निवास करते हैं। यह कुछ बड़े खनन वाले राज्यों के गरीबी के आंकड़ो से स्पश्ट हो जाता है।
■ वर्श 2011-2012 के लिए योजना आयोग द्वारा किए गये आकलन के अनुसार, तीनों षीर्श खनन करने वाले राज्यों-छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिषा में गरीबी की रेखा के नीचे जनसंख्या का अनुपात लगभग 40 प्रतिषत का रहा है जो 21.9 प्रतिषत के राश्ट्रीय औसत से बहुत ऊँचा है।
■ योजना आयोग ने छत्तीसगढ़ के 15 जनपदों को पिछड़े के रूप में चिन्हित किया है जबकि झारख्ंाड और ओडिषा के लिए यह क्रमषः 19 और 27 प्रतिषत है।
■ देश में जनजातीय जनसंख्या के लिए स्थिति काफी भयावह है; विषेशतः ग्रामीण खनन वाले जनपदों में। जनजातीय मामलों के मंत्रालय के 2014 के अनुमान के अनुसार जनजातीय जनसंख्या का एक महŸवपूर्ण अनुपात; विषेशकर खनन राज्यों के ग्रामीण इलाकों में, गरीबी रेखा के नीचे रहता है। ओडिषा में ग्रामीण जनजातीय जनसंख्या के 75 प्रतिषत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं, जबकि छत्तीसगढ़, झारख्ंाड, मध्य प्रदेष और महाराश्ट्र में यह आंकड़ा 50 प्रतिषत से अधिक है।
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