370 करोड़ रुपये से अधिक फण्ड के साथ, पश्चिम सिंहभूम डीएमएफ ट्रस्ट, बाल मृत्यु दर को कम करने, पोषण, स्वास्थ्य सेवा में सुधार लाने में एवं स्थानीय लोगों के लिए सतत आजीविका के उपायों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कार्य कर सकती हैI

मार्च 13, 2018

सीएसई आकलन रिपोर्ट और मॉडल डीएमएफ के दिशानिर्देश के अनुसार पश्चिम सिंहभूम में चार प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया है, जिन पर डीएमएफ राशि को अगले 3 से 5 वर्षों में खर्च किया जाना चाहिए। 

  • सबसे महत्वपूर्ण समस्या जिस पर जरूरी ध्यान एवं लक्षित निवेश करने की जरूरत है, वह शिशु मृत्यु दर (IMR), 5 से कम मृत्यु दर (under five mortality U5MR) एवं कुपोषण को कम करना है ; जो कि भारत में सबसे निचले स्तर में से एक है I
    पश्चिम सिंहभूम के ग्रामीण क्षेत्रों में IMR 57 है, और U5MR 96 है, और 5 वर्ष से कम उम्र के 60% बच्चे कुपोषित हैं। 
  • स्वास्थ्य सुविधाओं और साथ ही साथ संसाधनों में सुधार के लिए एक साथ निवेश की आव्यश्यकता हैI सीएसई रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं और डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों के मामले में काफी आभाव हैI 
  • राज्य सरकार का डीएमएफ फंड के बड़े हिस्से को पाइप जलापूर्ति और स्वच्छता के लिए आवंटित करने का निर्देश, पश्चिम सिंहभूम जैसे जिले के लिए भी प्राथमिकता नहीं हो सकता है। जिले की जमीनी हकीक़त को देखते हुए और ज्यादा गंभीर मुद्दे- जैसे पोषण और स्वास्थ्य देखभाल, डीएमएफ से निवेश के लिए विचार किया जाना चाहिए। 
  • पानी प्रदूषित होने की वजह से खनन प्रभावित क्षेत्रों में निवास करने वाले परिवारों, आंगनवाड़ी, स्कूल और स्वास्थ्य सेवा केंद्रों में ट्रीटेड पानी की उपलब्धता महत्वपूर्ण है। 
  • स्थानीय संसाधनों को ध्यान में रखते हुए लोगों की आजीविका, जैसे वन और कृषि आधारित, में निवेश की आवश्यकता है जो  वास्तव में लोगों के जीवन में सुधार लाएI 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट, नई दिल्ली स्तिथ एक गैर-लाभकारी थिंक टैंक, ने पश्चिम सिंहभूम जिले के खनन प्रभावित क्षेत्रों की स्थिति का विश्लेषण किया है, जिसे ध्यान में रखते हुए जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) की राशि खर्च की जा सकती है और इसके लिए योजना बनाई जा सकती है ।

सीएसई ने एक मॉडल प्लानिंग एप्रोच भी बताया है, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण तरीके हैं जिन पर डीएमएफ़ फंड खर्च किया जा सकता है। 

सीएसई ने प्रमुख मुद्दों और सिफारिशों को पश्चिम सिंहभूम जिला प्रशासन के साथ साझा किया है I

13 मार्च को एक सार्वजनिक बैठक में, सीएसई ने किये गये अध्यन को जिले के खनन प्रभावित क्षेत्रों जैसे नावामुंडी, मनोहरपुर, झिंकपानी इत्यादि के लोगों के साथ साझा किया और साथ ही चर्चा की I बैठक में खनन क्षेत्रों के विभिन्न ग्राम पंचायतों से लगभग 60 लोगों के साथ साथ जिले के विभिन्न सामुदायिक संगठनों ने भी भाग लिया । 

सीएसई रिपोर्ट, जिले के आधिकारिक आंकड़ों के मूल्यांकन के आधार पर और साथ ही एक महीने के फील्ड सर्वे पर आधारित है। सर्वेक्षण के दौरान, खनन प्रभावित क्षेत्रों के लोगों जिनमे विभिन्न जाति समूहों, महिलाओं, पंचायती राज प्रतिनिधियों, प्रखंड के अधिकारियों, पंचायत स्तर कर्मचारी आदि के साथ चर्चा की गई है। 

पश्चिम सिंहभूम में डीएमएफ फंड और इसके संभावनाएं 

झारखंड में वर्तमान में डीएमएफ के तहत 2,500 करोड़ से अधिक राशि प्राप्त हुई हैI पश्चिम सिंहभूम राज्य में लौह अयस्क खनन में सबसे बड़ा जिला है, और डीएमएफ के सबसे बड़े शेयरों में से एक है, जो की अब तक 370 करोड़ रुपये से अधिक है। जिले को  डीएमएफ में हर साल 165 करोड़ रुपये प्राप्त करने का अनुमान है, जो वास्तव में रॉयल्टी दरों में प्रस्तावित संशोधन के साथ बढ़ सकता है। 

बैठक में पंचायती राज के सदस्यों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों से बात करते हुए, सीएसई के कार्यक्रम प्रबंधक, श्रेष्ठा बॅनर्जी ने कहा, "डीएमएफ खनन से प्रभावित हुए लोगों के जीवन और आजीविका में सुधार करने का एक बड़ा मौका हैI "पश्चिम सिंहभूम जिसके पास 370 करोड़ डीएमएफ फण्ड है, ऐसे में यह बहुत दुर्भाग्य की बात होगी कि शिशुओं और बच्चों को पोषण और स्वास्थ्य सेवा की कमी की वजह से उनका कुपोषित होना या मर जाना जारी है।” पाइप जलापूर्ति और स्वच्छता को प्राथमिकता देने के की राज्य सरकार का निर्देश महत्वपूर्ण है, लेकिन पश्चिम सिंहभूम जैसे जिले के लिए सबसे बड़ा प्राथमिकता नहीं हो सकता है। " श्रेष्ठा बॅनर्जी, प्रोग्राम मेनेजर , सीएसई I पश्चिम सिंहभूम  के ग्रामीण क्षेत्रों में IMR 57 है, और U5MR 96 है, और 5 वर्ष से कम उम्र के 60% बच्चे कुपोषित हैं। 

पश्चिम सिंहभूम में, 5 से कम मृत्यु दर (U5MR) 87 है और 5 साल से कम उम्र के 60% से अधिक बच्चों के औसत वजन कम है या अविकसित है। 

"बाल स्वास्थ्य, स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे और संसाधनों, शिक्षा और सतत आजीविका के अवसरों में सुधार के लिए अभिनव निवेश करने का बड़ा अवसर है। राशि का उपयोग इनके लिए तत्काल और दीर्घकालिक निवेशों के माध्यम से किया जा सकता है। " बॅनर्जी ने कहा । 

पंचायतों के प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार और चिंताओं को साझा किया हालांकि, डीएमएफ के लगभग 3 वर्षों -2015 में प्रभाव आने के बाद, पीआरआई के सदस्यों और खनन प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के बीच जानकारी का काफी अभाव हैं। नियोजन प्रक्रिया में भी उनकी भागीदारी कम रही है I यह इस तथ्य के बावजूद है कि डीएमएफ कानून स्पष्ट रूप से अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं की भूमिकाओं को स्पष्ट करता है- लाभार्थियों की पहचान के लिए, डीएमएफ की योजना और निगरानी में सहभागिता के लिए I 

मुख्य निष्कर्ष एवं सीएसई के सुझाव 

  1. बाल स्वास्थ्य और पोषण को प्राथमिकता की जरूरत है- जिले में शिशु और 5 की मृत्यु (U5MR) दर बहुत अधिक है, आईसीडीएस के कार्यान्वयन में कमी है जितनी कि अव्यश्यकता है। खनन से प्रभावित क्षेत्रों में जैसे नोआमुंडी, झिकपनी, मंझारी, चाईबासा, आंगनवाड़ी अपनी क्षमता से तीन गुना जायदा सेवारत हैं। इसके अलावा, कई आंगनवाड़ी में स्थायी ढांचे, पीने का पानी और शौचालय की सुविधा नहीं है। नोआमुंडी, जो सबसे अधिक खनन प्रभावित क्षेत्र है, 46% आंगनवाड़ी केन्द्रों की स्थायी संरचना नहीं है। सीएसई सर्वेक्षण के अनुसार लगभग किसी भी आंगनवाड़ी केंद्र में अपनी पानी की सुविधा नहीं है;बच्चों के लिए ट्रीटेड पेयजल तो दूर की बात हैI

    पश्चिम सिंहभूम, डीएमएफ  से आईसीडीएस क्षेत्र में कार्य कर सकती है ।सीएसई शोधकर्ताओं ने सभी मौजूदा आंगनवाड़ी में स्थायी संरचना और पेयजल और स्वच्छता सुविधाएं प्रदान करने की सिफारिश की है ताकि कम से कम उन्हें ठीक से कार्यात्मक बनाया जा सके बाल स्वास्थ्य में सुधार के लिए ।  सीएसई रिपोर्ट ने डीएमएफ फंड के माध्यम से प्रत्येक खनन प्रभावित गांवों में शिशु सेंटर (crèche) उपलब्ध कराने की सिफारिश भी की है। "यह 6 महीने से 3 साल के बच्चों के बाल स्वास्थ्य और पोषण के सुधार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस मुद्दे पर काम करने वाले कई स्वास्थ्य चिकित्सकों द्वारा यह सुझाव दिया गया है और संगठनों द्वारा डेमोंस्ट्रेट किया गया है। " श्रेष्ठा बॅनर्जी 

  1. ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा एक बड़ी चुनौती है, जिसे कई माध्यम से निवेश की जरुरत है - जिले में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और संसाधन बेहद खराब हैं। झिंकपानी, मंझारी एवं चाईबासा प्रखंड में कोई कार्यात्मक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) नहीं हैं, ये सभी प्रखंड खनन प्रभावित हैं I अन्य जगहों पर भी पीएचसी अपनी क्षमता से 2 से 3 गुना ज्यादा काम कर रहे हैं। यह स्थिति अस्पतालों के साथ भी है Iएक बड़ी समस्या डॉक्टर, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ हैI सीएसई रिपोर्ट बताती है कि पीएचसी और सीएचसी में डॉक्टरों / चिकित्सा अधिकारियों की 60% कमी है, जिला अस्पताल में डॉक्टरों की लगभग 55% पद रिक्त हैं। यह कमी अन्य सभी चिकित्सा कर्मचारियों जैसे की नर्सों, प्रयोगशाला तकनीशियनों आदि के लिए ख़राब या समान है ।

    "केंद्र सरकार ने इस साल बजट में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की खराब स्थिति पर बात की है। राज्य सरकार और जिला को स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति में सुधार के लिए डीएमएफ फंड का इस्तेमाल करना चाहिए। यहां लोगों के जीवन को सुधारने के लिए बुनियादी है।" सीएसई रिपोर्ट ने इसमें सुधार के लिए कई  सुझाए दिए हैं। बुनियादी ढांचे के लिए, कम से कम 2 पीएचसी को नोआमुंडी, झिंकपनी, चाइबासा, मांझारी, जगन्नाथपुर ब्लॉक में विकसित करने की आवश्यकता है। कमी को ठीक करने के लिए स्वास्थ्य उप केंद्रों को भी उन्नत किया जा सकता है। स्वास्थ्य कर्मचारियों, विशेष रूप से डॉक्टरों और नर्सों की कमी को दूर करने के लिए अनुबंध पर  प्रशिक्षित कर्मचारियों को लिया जा सकता हैं I गरीबों को हेल्थ वाउचर उपलब्ध कराने से उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधा सरकारी एवं निजी स्वास्थ्य केन्द्रों में पाने में मदद मिल सकती है। "यह महत्वपूर्ण कदम हैं यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्वास्थ्य सुविधाओं को अच्छी तरह से बहाल किया जाय है और इस क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित किया जाय।" श्रेष्ठा बॅनर्जी 

  1. साफ़ (ट्रीटेड) और पर्याप्त पानी की आपूर्ति: खनन क्षेत्रों में जल प्रदूषण काफी जायदा है। Ground एवं surface water में प्रदुषण, खनन क्षेत्रों से run off, लीचेट, माइन डिस्चार्ज इत्यादि से होते हैं। लेकिन मनोहरपुर में लगभग 92% घरों और नोआमुंडी में लगभग 68% घरों में ट्रीटेड नल का पानी की उपलब्धता नहीं है। पाइप जलापूर्ति पानी उपलब्ध कराने में सहायक होगा, लेकिन पानी साफ होना चाहिए, जिसका अर्थ है उसे ट्रीटेड होना जरुरी है सीएसई शोधकर्ताओं ने हाईलाइट किया। 

  1. प्राथमिक स्तर की शिक्षा के बाद की पढाई एक महत्वपूर्ण चुनौती: खनन क्षेत्रों सहित जिले के लगभग सभी हिस्सों में माध्यमिक विद्यालयों में नामांकन प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के नामांकन से लगभग आधी है। 20-39 आयु वर्ग में, केवल 13% लोगों ने उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी की है। सीएसई रिपोर्ट से पता चलता है कि प्राथमिक विद्यालयों में लगभग 50% और 80% माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की आवश्यक संख्या नहीं है, जैसा कि सरकार के मानकों सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अनुसार आवश्यक है।

    "बेहतर वेतन के जरिये शिक्षकों को भर्ती करना आवश्यक होगा" बॅनर्जी ने कहा I इसके अलावा प्राथमिक स्तर के स्कूलों को इस कमी को दूर करने के लिए उन्नत किया जा सकता है। साथ ही वित्तीय समस्याओं के कारण कई बच्चों ड्रापआउट हो जाते, इसके लिए माध्यमिक विद्यालय स्तर पर मिड डे मील स्कीम का दायरा बढ़ाया जा सकता है-सीएसई रिपोर्ट । 

  1. स्थानीय संसाधनों के अनुसार आजीविका के लिए दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान देने की आवश्यकता है: सरकारी रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम सिंगभूमि जिले में लगभग 54% लोग गैर श्रमिकों हैं उनमें से भी, आधे मैनुअल या casual worker हैं, जिनके स्थिर आय नहीं है I ग्रामीण क्षेत्रों में, काम करने वाले परिवारों के की भी कमाई कम हैI लगभग 50% ग्रामीण परिवारों में सबसे अधिकतम कमाई वाले प्रमुख हैं जो कि प्रति माह 5000 रुपये से नीचे हैं, जो आज के संदर्भ में बेहद कम है "बॅनर्जी ने कहा 

"खनन प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के जीवन में सुधार के लिए जिला को सतत आजीविका विकल्पों पर निवेश करना शुरू करना है। यह स्थानीय लोगों के लिए वन और कृषि आधारित आजीविका पर केंद्रित होना चाहिए " श्रेष्ठा बॅनर्जी ने कहा । सरकार को वन आधारित आजीविका सुनिश्चित करने पर कार्य करने की आवश्यकता है क्योंकि खनन प्रभावित क्षेत्रों जैसे मनोहरपुर और नोआमुंडी प्रखंड में  लगभग 40% क्षेत्र जंगल है। "सीएएसई रिपोर्ट ने प्रकाश डाला है कि इसके लिए सक्रिय होकर वनाधिकार के तहत सेटलमेंट एवं लघु वनोपज के माध्यम से आजीविका को बढ़ावा देने की आवश्यकता होगी"। कृषि की क्षमता में सुधार के लिए दीर्घकालिक कार्यनीति की आव्यश्यकता है जैसे वाटरशेड आधारित प्रबंधन को सुनिश्चित करना । स्थानीय संसाधनों और उनके ज्ञान के आधार पर लोगों के लिए स्थायी आजीविका सुनिश्चित करना जो न सिर्फ आज उन्हें मदद करेगा, बल्कि भविष्य को सुरक्षित करेगा, जैसा की प्रधान मंत्री खनिज कल्याण योजना (पीएमकेकेकेवाई) ने प्रमुखता दी है । " श्रेष्ठा बॅनर्जी ने कहा ।
 

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