कोविड-19 के चलते अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई के लिए भारत सरकार कोयला खनन में निजीकरण का दरवाजा खोल रही है। कोयला आधारित पावर स्टेशन प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में शामिल हैं। लिहाजा इस सेक्टर को पर्यावरण मानकों को पूरा करना चाहिए ताकि “साफ हवा में सांस लेने के हमारे अधिकार” सुनिश्चित हो, सीएसई ने कहा।
सीएसई के अध्ययन को यहां से डाउनलोड करें: https://www.cseindia.org/coal-based-power-norms-coal-based-10125
शोध के बिन्दुओं को विस्तार से समझने के लिए यहां क्लिक करें: https://www.cseindia.org/coal-based-power-norms-10123
नई दिल्ली, 21 मई, 2020: भारत के कोयला आधारित पावर स्टेशनों को 2022 तक पर्यावरण के कठोर मानकों को पूरा करना है। ये मानक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साल 2015 में ही तैयार किए थे। लेकिन, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपने नए अध्ययन में पाया है कि करीब 70 प्रतिशत प्लांट उत्सर्जन के मानक को 2022 तक पूरा नहीं कर पाएंगे।
सीएसई के शोधकर्ताओं ने कहा, “कोयला खनन को बढ़ाने पर केंद्र सरकार के जोर को देखते हुए हमारे लिए अध्ययन करना जरूरी हो गया था। हम ये स्वीकार नहीं कर सकते कि उत्सर्जन पर नियंत्रण किए बिना कोयला का इस्तेमाल जारी रहे। हम चाहते हैं कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद आर्थिक वृद्धि को रफ्तार मिले, लेकिन वृद्धि वैसी होनी चाहिए कि जिसमें साफ हवा में सांस लेने का हमारा अधिकार अक्षुण्ण रहे। ये भी समान रूप से जरूरी होना चाहिए।”
कोल-बेस्ड पावर नॉर्म: ह्वेयर डू वी स्टैंड टूडे नाम से तैयार किए गए अध्ययन को आज एक ऑनलाइन कार्यक्रम में जारी किया गया। इस कार्यक्रम में सूत्रधेर की भूमिका में सीएसई की डायरेक्टर जनरल सुनीता नारायण रहीं। इस अध्ययन रिपोर्ट में कोयला आधारित पावर थर्मल प्लांट में पर्यावरण नियमों को लागू करने में हुई प्रगति का विस्तार से मूल्यांकन किया गया है।
नारायण ने कहा, “पर्यावरण नियमों को लागू करने को लेकर 7 साल पहले अधिसूचना जारी करने और 2017 में 5 वर्ष का अधिक समय दिए जाने के बावजूद अधिकतर पावर प्लांट वर्ष 2022 तक सल्फर डाई-ऑक्साइड (एसओ2) का उत्सर्जन तयशुदा मानक के अधीन नहीं करेंगे।” इसके अलावा पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) या नाइट्रोजन के उत्सर्जन की तयशुदा सीमा को लेकर सार्वजनिक तौर पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। साथ ही साथ थर्मल पावर प्लांट के लिए भी कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है कि उन्हें कितना पानी इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि पानी का बेतहाशा इस्तेमाल करने वाले इस सेक्टर को पानी के इस्तेमाल लेकर ज्यादा जबावदेह बनाया जा सके।
सुनीता नारायण कहती हैं, “कोयला आधारित पावर प्लांट देश के उन इंडस्ट्रीज में शामिल हैं, जो सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। पूरी इंडस्ट्री से जितने पीएम का उत्सर्जन होता है, उनमें से 60 प्रतिशत उत्सर्जन कोयला आधारित पावर प्लांट्स से होता है। इसी तरह कुल सल्फर डाई-ऑक्साईड उत्सर्जन का 45 प्रतिशत, कुल नाइट्रोजन के उत्सर्जन का 30 प्रतिशत तथा कुल पारा के उत्सर्जन का 80 प्रतिशत इस सेक्टर से निकलता है। अतः अगर हम कोयले का इस्तेमाल जारी भी रखते हैं, तो थर्मल पावर सेक्टर को इसकी साफ-सफाई का भी खयाल रखना चाहिए। इससे किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता है।”
कोयला आधारित पावर सेक्टर के अध्ययन में क्या मिला
सीएसई के मुताबिक, कुल बिजली उत्पादन का 56 हिस्सा कोयले पर आश्रित होता है लिहाजा भारत के पावर सेक्टर के लिए कोयला काफी अहम है। सल्फर डाई-ऑक्साईड समेत अन्य प्रदूषक तत्वों के उत्सर्जन के लिए तो ये सेक्टर जिम्मेवार है ही, इसमें पानी की भी बहुत जरूरत पड़ती है। भारत की पूरी इंडस्ट्री जितने ताजा पानी का इस्तेमाल करती है, उसमें 70 प्रतिशत हिस्सेदारी पावर सेक्टर की है।
साल 2015 में सीएसई की तरफ से हीट ऑन पावर शीर्षक से किए गए एक अध्ययन (https://www.cseindia.org/heat-on-power-5768) में कहा गया था कि इस सेक्टर के पर्यावरणीय प्रदर्शन में सुधार की बहुत गुंजाइश है। अध्ययन में प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए कुछ कठोर नियम लाने की अनुशंसा की गई थी। दिसंबर 2015 में पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय कठोर पर्यावरणीय मानक लेकर आया।
सीएसई अपनी रिपोर्ट में कहता है, “2015 में लाए गए नियम वैश्विक नियमन पर आधारित हैं। एक अनुमान के मुताबिक, इन नियमों का पालन किया जाए, तो पीएम के उत्सर्जन में 35 प्रतिशत, सल्फर डाई-ऑक्साईड के उत्सर्जन में 80 प्रतिशत और नाइट्रोजन के उत्सर्जन में 42 प्रतिशत तक की कटौती हो सकती है। साथ ही इंडस्ट्री ताजा पानी के इस्तेमाल में भी कमी ला सकती है।”
लेकिन, ये सेक्टर नियमों को स्वीकार करने से दूर रहा है। इसने पहले 2015 के नियमों में रुकावट डालने की कोशिश की। वर्ष 2015 के नियमों को लागू करने का समय 2017 से बढ़ाकर 2022 कर दिया गया, लेकिन ये सेक्टर इसे अपनाने में अलसाता रहा है।
सीएसई के इंडस्ट्रियल पॉलूशन यूनिट के डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर व रिपोर्ट के लेखकों में एक सुंदरम रामनाथन कहते हैं, “सीएसई की रिपोर्ट इस तरह तैयार की गई है जिससे विषय के बारे में समझ मजबूत होगी। इसमें नियमों की जानकारी और इसे लागू करने की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। साथ ही साथ पुराने प्लांट्स के फेज आउट के अपडेट्स और नए के लिए क्या नियम हैं, इसकी भी जानकारी दी गई है। इतना ही नहीं इसमें सिफारिशें भी की गई हैं।
रिपोर्ट में की गई सिफारिश
नारायण कहती हैं, “हमें मालूम है कि पावर सेक्टर देश के उद्योग और घरों को बिजली पहुंचाता है अतः इसे बंद करना मुश्किल है। लेकिन स्थितियां ऐसी हैं, जो नियमों को लागू करने के प्रयासों को बेपटरी कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप पावर प्लांट्स सभी दिशानिर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं। हमारा सुझाव है कि मेरिट ऑर्डर डिस्पैच सिस्टम में में बदलाव होना चाहिए ताकि प्रदूषण नहीं फैलाने वाले प्लांट्स को इंसेंटिव मिले व शानदार प्रदर्शन करने वालों को पुरस्कार दिया जाए। वहीं, जो नियमों को नहीं माने उन्हें इंसेंटिव न मिले।”
इस संबंध अधिक जानकारी या इंटरव्यू वगैरह के लिए सीएसई मेडिया रिसोर्स सेंटर की सुकन्या नायर से sukanya.nair@cseindia.org, 88168 18864 पर संपर्क करें।
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