मनरेगा के तहत किये गये जल संरक्षण ने हिन्दीपट्टी में आर्थिक संपन्नता लाई, डाउन टू अर्थ मैगजीन के सर्वे व विश्लेषण में खुलासा

बिहार, हरियाणा, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश

डाउन टू अर्थ ने साल 2006 में देश के सबसे पिछड़े जिले का दर्जा पा चुके बिहार के कैमूर का दौरा किया। मनरेगा के जरिए यहां के पारंपरिक सिंचाई व्यवस्था के पुनरोद्धार हो जाने के कारण आज यहां के भूमिहीन किसान भी पट्टे पर खेत लेकर खेती से कमाई कर रहे हैं 

डाउन टू अर्थ के सर्वे में बदलाव की ऐसी ही कहानी हरियाणा, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी मिली। 

मनरेगा की 15वीं वर्षगांठ पर इस कार्यक्रम के प्रभावों के आकलन के लिए डाउन टू अर्थ के 14 पत्रकारों ने कोरोना महामारी के खतरों के बीच 15 राज्यों में 16000 किलोमीटर की यात्रा की  

जलवायु परिवर्तन के दौर में जल संरक्षण और भी जरूरी हो जाएगा। मनरेगा इस दिशा में दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है क्योंकि इसमें मानव श्रम के जरिए सुखाड़ से लड़ने का ढांचा तैयार किया जाता है।

नई दिल्ली, 22 मार्च, 2021हमारे नये राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में पता चला है कि जल संरक्षण को अगर केंद्र में रखा जाये, तो महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) में भारत की ग्रामीण तस्वीर के कायाकल्प और देश के गरीबों के जीवन को बदल देने की क्षमता है। ऐसे में विश्व जल दिवस के मौके पर ग्रामीण भारत के जलयोद्धाओं की इस अनपेक्षित कामयाबी का जश्न मनाने से बेहतर भला क्या हो सकता है?, ये बातें विश्व जल दिवस के मौके पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की डायरेक्टर जनरल और डाउन टू अर्थ पत्रिका की संपादक सुनीता नारायण ने एक वेबिनार के उद्घाटन के मौके पर कहीं। 

वेबिनार में इस रिपोर्ट के बिन्दुओं पर चर्चा की गई है, जिसमें बताया गया है कि गांवों ने कैसे मनरेगा की मदद से खुद को सुखाड़ प्रभावित से समृद्धि की यात्रा तय की। वेबिनार में उन गांवों के जलयोद्धा यानी वे प्रतिनिधि शामिल हुए, जिन्होंने अपने गांवों को सूखे से ऊबार कर समृद्ध बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। 

डाउन टू अर्थ के मैनेजिंग एडिटर रिचर्ड महापात्रा ने कहा, “डाउन टू अर्थ के 14 पत्रकार कोविड-19 महामारी के बीच देश के दूरदराज के इलाकों में गये और जानने की कोशिश की कि देश के ग्रामीण इलाकों में इस एक्ट के क्या मायने हैं। उन्होंने 15 राज्यों के 15 जिलों के 16 गांवों का दौरा किया तथा सीधे ग्राउंड से प्रामाणिक कहानियां लेकर आये।” 

रिपोर्ट के सिलसिले में पत्रकारों ने भारत के हिन्दीभाषी प्रदेशों के सात जिलों के गांवों का दौरा किया जिनमें कैमूर (बिहार) जिले का जमुनवा, सिरसा जिले का भरोखां, पाकुड़ (झारखंड) का झेनागरिया, मध्यप्रदेश के टिकमगढ़ जिले का नदिया गांव व सीधी जिले का बरमनी गांव, डुंगरपुर (राजस्थान) का बटका फला और जालौन (उत्तर प्रदेश) का हिम्मतपुरा गांव शामिल हैं। 

डाउन टू अर्थ ने क्या पाया?

जमुनवा: बिहार के कैमूर जिले के जमुनवा, नरवाहंद और सेमरिया जैसे गांवों में लोग मनरेगा का इस्तेमाल कर पारम्परिक सिंचाई व्यवस्था को पुनरोद्धार कर रहे हैं।  मगध साम्राज्य के समय में सिंचाई के लिए आहर (छोटे चैनल) और पइन (तालाब) की व्यवस्था थी। अत्यधिक जलदोहन के लिए ट्यूबवेल जैसी व्यवस्था का प्रचलन बढ़ने के कारण बीसवीं शताब्दी में आहर-पइन व्यवस्था निष्क्रिय हो गई। इससे भूगर्भ जलस्तर गिरने लगा और खेती प्रभावित हुई। भूमिहीन किसान दसमी राम कहते हैं, “मनरेगा के कारण ही मेरे जैसे गरीब लोग, जो खेती करने का सपना भी नहीं देख सकते थे, अब खेती से कमाई कर रहे हैं।” इस  क्षेत्र में अब भूगर्भ जलस्तर में सुधार भी हुआ है और गांव के 40 प्रतिशत खेतों की सिंचाई इन व्यवस्था से की जाती है। 

भरोखां: हरियाणा के सिरसा जिले के गांवों में मनरेगा के तहत तीन तालाबों की व्यवस्थ की गई है।  ये तालाब अगल-बगल में तैयार किये गये हैं और पाइप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। भरोखां, भावदीन व जसानिया जैसे गांवों से निकलने वाले पानी को तालाबों की तरफ मोड़ा जाता है। पानी में मौजूद गंदगी तालाब की सतह में बैठ जाती है, जिससे पानी साफ हो जाता है। इस व्यवस्था के जरिए ग्रामीण सिंचाई के लिए पानी पर होने वाले खर्च का 66 प्रतिशत हिस्सा बचा रहे हैं और भूगर्भ जल पर उनकी निर्भरता भी कम हो गई है। जसानिया गांव के एक किसान ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, “मैं पहले एक एकड़ में सिंचाई के लिए 3000 रुपए खर्च कर ट्यूबवेल का पानी खरीदता था। अब मैं सिर्फ 1000 रुपए खर्च करता हूं और बाकी पानी तालाबों से मिल जाता है।” 

झेनागरिया: झारखंड के पाकुड़ जिले के इस गांव में साल 2006 से पांच तालाब और 12 चकबांध बनाना शुरू किया और अब वहां के किसानों की कृषि उत्पादकता में चार गुना इजाफा हुआ है। डाउन टू अर्थ ने पाया कि साल 2021 तक इस क्षेत्र के भूगर्भ जलस्तर में सुधार आया है और अब ग्रामीण, सरकार से किसी तरह की मदद नहीं लेते हैं। इन जलस्रोतों का इस्तेमाल करने वाले किसान ही इन ढांचों की देखभाल करते हैं। 

बरमनी: डाउन टू अर्थ ने साल 2006 में भी मध्यप्रदेश के सीधी जिले के बरमनी गांव का दौरा किया था। उस समय ग्रामीणों ने गांव का परित्याग कर दिया था और वे चिंतित थे, लेकिन अब प्रवासी मजदूर दोबारा खेती शुरू करने के लिए गांव लौट आये हैं। ग्रामीणों का कहना है कि ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि सीधी ग्राम सभा ने मनरेगा रूल बुक के नियमों का कड़ाई से पालन किया। चकबांध व समोच्च खत्तियों के चलते यहां की जल उपलब्धता में सुधार हुआ है और किसान अब साल के 10 महीने खेती में ही व्यस्त रहते हैं। किसान व पंचायत के सदस्य राकेश सिंह ने कहा कि ग्रामीण अब खपत से ज्यादा अनाज उत्पादन कर रहे हैं। गांव में अभी सात बड़े तालाब व 39 कुएं हैं। यहां के सभी निवासी स्थापित किसान हैं। महिलाओं को भी पानी के लिए अब दूर नहीं जाना पड़ता है। 

नदिया: साल 2006 में मध्यप्रदेश के टिकमगढ़ जिले का गांव सुखाड़ (45 साल में 40 बार सूखा पड़ा था) से बुरी तरह प्रभावित था और खेती योग्य जमीन के महज 30 प्रतिशत हिस्से में खेती होती थी। स्थानीय निवासियों ने अब अपने गांव के चारों और पानी का सुरक्षा घेरा तैयार कर लिया है। सुखाड़ और पलायन प्रवण क्षेत्र में बसे इस गांव में मनरेगा के तहत कुल 55 तालाब (स्थानीय भाषा में तलैया) बनाये गये। इन तालाबों को बहुत कम देखभाल की जरूरत पड़ती है क्योंकि ये वर्षाजल के बहाव वाले मार्ग में बने हुए हैं। इन में गाद भी नहीं जमता है। गांव के निवासी केशव दास कुशवाहा कहते हैं, “इन ढांचों के कारण हम अब जल संकट के श्राप से मुक्त हो गये हैं।” इस क्षेत्र में अब 90 प्रतिशत खेत सिंचित है और किसानों की कमाई में 400 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 

बटका फालाराजस्थान के डुंगरपुर जिले में सलाना 710 मिलीमीटर बारिश होती है। लेकिन, पहाड़ी इलाका होने के कारण बारिश का पानी भूगर्भ में जाने की जगह बहकर निकल जाता था। मनरेगा के तहत बटका फाला और पलदेवाल गांवों में पानी का बहाव रोकने के लिए गड्ढा और एनिकट बनाया गया। जिला कलक्टर सुरेश ओला कहते हैं, “बटका फाला के किसानों को साल में तीन फसलों के लिए सिंचाई का पानी तालाब से मिल जाता है।अब तालाब प्रवासी पक्षियों को  भी आकर्षित कर रहा है।” 

हिम्मतपुरा: उत्तर प्रदेश के जालौन जिले का हिम्मतपुरा गांव मनरेगा के आने से पहले से ही जल संरक्षण को लेकर जागरूक था। साल 2005 में फ्लश बाढ़ के कारण सूखा प्रवण क्षेत्र में स्थित इस गांव में एक चकबांध बनाया गया था। शुरुआत में मनरेगा के तहत गांव में क्यक्तिगत स्तर पर व बहुत छोटे पैमाने पर काम हुआ। लेकिन, साल 2014 में जब गाद के कारण चकबंध निष्क्रिय हो गया, तो ग्रामीणों ने मनरेगा के तहत सामुदायिक हस्तक्षेप शुरू किया। चकबंध की स्थिति अब ग्रामीणों की आर्थिक समृद्धि बताता है। स्थानीय निवासी पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं, “जब चकबंध निष्क्रिय था, तब मैं सिर्फ 40 किलोग्राम सरसों उगा पाता था, लेकिन अब उतने ही खेत में 400 किलो सरसों उगा रहा हूं।” 

रिचर्ड माहापात्रा ने कहा, “जहां मनरेगा का सफल उपयोग कर ढांचा खड़ा किया गया हो, ऐसे गांवों की शिनाख्त करना मुश्किल काम था क्योंकि इस कार्यक्रम के तहत जो भी काम होते हैं, उनकी मौजूदा स्थिति का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। सरकार केवल काम की संख्या और काम पूरा हुआ कि नहीं, इसका रिकार्ड रखती है। लेकिन इससे ये पता नहीं चलता है कि मनरेगा के तहत जो ढांचा विकसित किया गया है, उससे गांव में जल सुरक्षा में सुधार हुआ कि नहीं, अथवा आजीविका में सुधार की जितनी अपेक्षा थी, उतनी हो पा रही है या नहीं। डाउन टू अर्थ के पत्रकार इसी की पड़ताल करना चाहते थे।” 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2006 से अब तक जल संरक्षण से संबंधित 3 करोड़ पर्यावरणीय ढांचा तैयार किया गया। यानी कि हर गांव में पानी से संबंधित करीब 50 ढांचे तैयार किये गये। आकलन बताता है कि इन ढांचों के जरिए इस अवधि में मोटे तौर पर 29000 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का संरक्षण किया गया और इनकी क्षमता 19 मिलियन हेक्टेयर खेतों की सिंचाई करने की है। 

सुनीता नारायण ने बताया: “पानी हमारे वर्तमान और भविष्य को निर्धारित करता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से ज्यादा बारिश और ज्यादा गर्मी पड़ेगी। ऐसे में जल प्रबंधन ही हमारी सफलता या विफलता होगी। आजीविका सुरक्षा के लिए भी जल संरक्षण बहुत अहम है। ये प्रतिकूल मौसम से सामना करने में सक्षम बनाता है। मनरेगा दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक सुरक्षा और जलवायु जोखिम प्रबंधन कार्यक्रम है।” 

विश्व जल दिवस पर सीएसई का प्रेस रिलीज यहां देखेंwww.cseindia.org 

वेबिनार से संबंधित जानकारियों यहां देखेंhttps://www.cseindia.org/water-and-mgnrega-transforming-india-10738 

डाउन टू अर्थ की पूरी स्टोरी और मनरेगा किस तरह ग्रामीण परिदृश्य और देश की अर्थव्यवस्था को बदल रही है, इससे जुड़े इनफो-पैकेज यहां देखेंwww.downtoearth.org.in

 

इस विषय पर और अधिक जानकारी व इंटरव्यू के लिए सीएसई मीडिया रिसोर्स सेंटर की सुकन्या नायर से संपर्क करेंsukanya.nair@cseindia.org / 8816818864

 

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