यह सरकारऔर उसके राष्ट्रीय एजेंडा पर सर्वोच्च प्राथमिकता में है. यह एजेंडा किसी और के द्वारा नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री मोदी के मिशनरी उत्साह से संचालित है. सरकार का कहना है कि 2020 तक गंगा को किसी भी कीमत पर साफ किया जाना है.
लेकिन डाउनटूअर्थ पत्रिका का मूल्यांकन कहता है कि समय सीमा करीब होने के बावजूद, नदी साफ नहीं होगी. भले ही इसके लिए भारी-भरकम बजटऔर राजनीतिक बयानबाजियों की कोई कमी नहीं है.
लखनऊ, 30अक्टूबर, 2018: करीब चार साल हो गए, जब प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ गंगा का वादा किया था. बावजूद इसके, गंगा नदी अभी भी प्रदूषितहो रहीहै. नदीके कि नारों पर रहने वाले लोग भले आंशिक रूप से उपचारित सीवेज का पानी पी सकते हैं लेकिन गंगा जल नहीं. भारत की सबसे सम्मानित नदी की स्थिति पर डाउनटूअर्थ पत्रिका का मूल्यांकन कम से कम यही कहता है. सरकार ने दावा किया था कि गंगा 2019 तक साफ हो जाएगी (अब ये समय सीमा 2020 तक बढ़ा दी गई है). डाउन टूअर्थ पत्रिका ने नदी की स्थिति का एक मूल्यांकन किया है. यह पत्रिका "विकास, पर्यावरण और स्वास्थ्य की राजनीति परआधारित एक पाक्षिक" है, जो सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा प्रकाशित होती है. इसके द्वारा किया गया मूल्यांकन मजबूती से यह बताता है कि यह नदी हमेशा की तरह और भी अधिक प्रदूषित बनी रहेगी.
पत्रिका द्वारा किए गए मूल्यांकन और मुद्दे को आज यहां मीडिया ब्रीफिंग में जारी किया गया. इस प्रेस कांफ्रेंस में उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के पत्रकारों ने भाग लिया.
मीडिया ब्रीफिंगमेंआए पत्रकारों को संबोधित करते हुए, रिचर्ड महापात्रा, प्रबंधसंपादक, डाउन टू अर्थ ने कहा:" नमामि गंगे अभियान को काफी जोर शोर के साथ लॉन्च किया गया था और इसके लक्ष्य काफी ऊंचे थे. लेकिन इसके पास उपलब्धि दिखाने के नाम पर कुछ खास नहीं है. 31अगस्त, 2018 तक, इस अभियान के तहत स्वीकृत परियोजनाओं की कुल संख्या में से केवल एक चौथाई सेअधिक ही पूरे हो सके हैं."
पत्रिका ने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा किए गए गंगा नदी की जलगुणवत्ता के परीक्षण को प्रस्तुत किया है. इसकेअनुसार, नदीपर स्थापित 70 निगरानी स्टेशनों में से केवल पांच का ही पानी पीने के लिए उपयुक्त था और केवल सात का पानी स्नान करने के लिए लायक था.
गंगा क्यों प्रदूषित हो कर बहती रहेगी
सीवेज उपचार - लक्ष्य से बहुत दूर
सीवेज का कुशलऔर प्रभावी उपचार नदी की स्वच्छता-सफाई योजनाका केंद्रहै. नमामि गंगे के लक्ष्योंकेअनुसार, 2,000 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का पुनर्वास किया जाना है. इनमें से केवल 328 एमएलडी ही कवर हो पाया है. महापात्रा कहते हैं, "सभी प्रोजेक्ट की स्थिति पर नजर डालने से संदेह पैदा होता है कि क्या सरकार अपनी संशोधित समय सीमा में भी लक्ष्य हासिल कर पाएगी." 31अगस्त, 2018 तक एसटीपी समेत कुल 236 परियोजनाओं को मंजूरी दीगई थी, जिसमें से केवल 63 ही पूरे हुए है.
सीवेजपैदा होने को ले कर आ रहे डेटा, चिंताकाएकऔर विषय है. एक शहर में पैदा होने वाले सीवेज की मात्रा केआधार पर एसटीपी डिजाइन किए गए हैं. लेकिन सीवेज कितना पैद होगा, इसके आकलन गलत साबित हुए हैं. डाउन टू अर्थ एक स्टडी रिपोर्टऔर सीपीसीबी डेटा को उद्धृत करते हुए कहता है कि अनुमान के मुकाबले गंगा में अपशिष्ट जल का वास्तविक निर्वहन123 प्रतिशतअधिक है.
नदी काप्रवाह तेजी से सिकुडता जा रहा है
मानसूनकेअलावा, गंगा में जलप्रवाह में कमी एक प्रमुख चिंता का विषय है. विशेषज्ञों का कहना है कि नदी में पानी का स्तर खतरनाक दर से नीचे जा रहा है. अगर नदी में प्रवाह बनाए रखा जाता है तो यह नदी में मौजूद कार्बनिक प्रदूषणका 60 से 80 प्रतिशत खुद ही दूर कर लेगी. लेकिन चिंता इसी बात की है कि भविष्य में प्रवाहऔर कम हो जाएगा. डाउन टू अर्थ मूल्यांकन का कहना है कि भागीरथी और अलकनंदा पर स्थापित कई जल विद्युत परियोजनाओं ने गंगा के ऊपरी हिस्सों को पारिस्थितिकीय रेगिस्तान में बदलदिया है. 1970 केदशकके मुकाबले 2016 में नदीके बेसफ्लोमें 56 प्रतिशत की कमी आई है.
नए शौचालय, ज्यादा मल कचरा-लेकिन यह सब जाएगा कहां?
स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार द्वारा गंगा तट पर बसे 99.33प्रतिशत गांवों को खुले में शौचालयसे मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है. लाखों शौचालयों का निर्माण किया गया है. 4,000 गांवोंमें 2.7 मिलियन शौचालय बनाए गए है. मिशन का उद्देश्य गंगा में फेकलकोलिफ़ॉर्मस्तर को क मकरना था. लेकिनमई 2018में,प्रति 100 मिली लीटर में 2,500 फेकल कोलिफॉर्म के मानक स्तर के उलट गंगा में इसका स्तर प्रति 100 मिली लीटर 2,40,000 तक था!
इसलिए, सिर्फ गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने की घोषणा करने के लिए नए शौचालयों का निर्माण कोई समाधान नहीं है. डाउन टूअर्थ द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि पांच गंगा बेसिन राज्य (उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिमबंगाल) जबपूर्ण रूप से ओडीएफबनजाएंगे तब लगभग180एमएलडीमल कचरा पैदा होगा. यदिइसका उचित प्रबंधनन हीं कियाजाता है, तो यह हमेशा गंगा को प्रदूषित करता रहेगा. आगे चिंताका कारण यह होना चाहिए कि मल कचरा, सीवेज की तुलना में एक बड़ा प्रदूषक है. जहां सीवेज का बीओडी150-300 मिली ग्राम/लीटर है वहीं मल कचरा का 15,000-30,000 मिलीग्राम/लीटर होगा. जब तक पैदा होए वाले मल कचरे का प्रभावी प्रबन्धन नहीं होता है तब तक गंगा साफ नही ंहोसकती है.
लागत बढ़नाऔर शासन की समस्यएं
विश्लेषण रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तरप्रदेश में गंगा बेसिन कस्बों में सीवरेज नेटवर्क बनाने के लिए ही 5,794 करोड़ रुपये कीआवश्यकता होगी. यह नमामि गंगे के पूरे व्यय से एक चौथाई अधिक है. सफाई कार्यक्रम में देरी से लागत में वृद्धि अलग होती है. नेशनल मिशन क्लीन गंगा के अनुसार, 22,323 करोड़ रुपये के परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, लेकिनअप्रैल 2018 तक स्वीकृत राशि का केवल 23प्रतिशत ही उपयोगकिया जा सका है.
इस वित्तीय कुप्रबंधन के अलावा, शासन में भी समस्याएं हैं. जल संसाधन मंत्रालय ने नमामि गंगे के बेहतर कार्यान्वयन के लिए10 मंत्रालयों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर कए थे. लेकिन डाउन टू अर्थ विश्लेषण कहता हैं- इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि विभिन्नमंत्रालय समन्वय कैसे करेंगे. जबकि विशेषज्ञों ने गंगा संरक्षण कानून (जो वर्तमान में सरकार के पास है) की प्रभावकारिता पर संदेह जताए हैं. इस मुद्देसे निपटने के लिए बनाए गए विभिन्न निकायों और एजेंसियों को नियमित रूप से मिलने का समय भी नहीं मिल पाता है.
महापात्रा ने कहा: "वर्तमान सरकारऔर गंगा को साफ करने के लिए बनाई गई सभी एजेंसियों के पास एक मौका है, पिछले 30 वर्षों कीअसफलता ओं और गलतियों सेसीखने का. लेकिन क्या वे ऐसा करेंगे? "
अंग्रेजी और हिंदी में संपूर्ण डाउन टू अर्थ कवरेज और उत्तरप्रदेश के शहरों में मल कचरा प्रबंधन पर रिपोर्ट के लिए देखें: www.cseindia.org
अधिकजानकारीकेलिए, कृपया संपर्क करें:
सुपर्णो बनर्जी, द सी एस ई मीडिया रिसोर्स सेंटर
souparno@cseindia.org / 9910864339.
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