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नई दिल्ली, 9 जून, 2023: राजस्थान के शहरों में पार्टिकुलेट प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और ओजोन जैसे कई गैसीय प्रदूषकों के स्तर में वृद्धि के साथ एक बहु-प्रदूषक संकट उभरकर सामने आ रहा है। नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अर्बन लैब द्वारा किए गए एक नए विश्लेषण ने राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों की चर्चा की है। इस रिपोर्ट में राज्य में पार्टिकुलेट और गैसीय प्रदूषण के लंबी अवधि के रुझानों के साथ-साथ मौसमी बदलाव का आकलन किया गया है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी के अनुसार, “स्वच्छ वायु कार्यक्रम के बावजूद न केवल गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में बल्कि राजस्थान के छोटे शहरों और कस्बों में भी वायु की गुणवत्ता खराब हो रही है। वायु गुणवत्ता में समयबद्ध सुधार के लिए उद्योग, वाहन और परिवहन, स्वच्छ ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन, निर्माण और हरियाली सहित प्रदूषण के सभी प्रमुख क्षेत्रों में प्रणालियों और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए राज्यव्यापी कार्रवाई की आवश्यकता है। स्वच्छ हवा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक मजबूत अनुपालन ढांचे के साथ प्रमुख क्षेत्रों में त्वरित उपायों के लिए समान रूप से संसाधन आवंटित करें।”
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी कहते हैं कि वायु गुणवत्ता निगरानी के विस्तार से इस बढ़ते जोखिम का बेहतर आकलन करने में मदद मिलेगी। शहर के स्टेशनों में निरंतर ऊंचा प्रदूषण स्तर एक प्रणालीगत प्रदूषण को उजागर करता है जिसका कारण प्रदूषण नियंत्रण का कमज़ोर बुनियादी ढांचा है। स्वच्छ वायु मानकों को पूरा करने के लिए पूरे साल कड़ी और एकसमान कार्रवाई की आवश्यकता है।
विश्लेषण में प्रयुक्त डेटा:
यह 1 जनवरी, 2019- 31 मई, 2023 की अवधि के लिए राजस्थान में निगरानी स्टेशनों से प्राप्त रियाल टाइम आंकड़ों का विश्लेषण है। इसमें 1 जनवरी, 2019 से 31 मई, 2023 की अवधि के लिए PM2.5, PM10, NO2, जमीनी स्तर के ओजोन और CO सांद्रता में वार्षिक और मौसमी रुझानों का आकलन किया गया है और यह राजस्थान में कार्यरत वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों से उपलब्ध रियल टाइम आंकड़ों पर आधारित है। इस विश्लेषण के लिए यूएसईपीए पद्धति के आधार पर बड़ी मात्रा में डेटा बिंदुओं को क्लीन और डेटा गैप्स को संबोधित किया गया है। इस विश्लेषण में राजस्थान के शहरों में फैले 42 कंटीन्यूअस एम्बिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम (CAAQMS) शामिल हैं। जयपुर (5), जोधपुर (5) और कोटा (3) में एक से अधिक रीयल-टाइम स्टेशन हैं, इसलिए तुलनात्मक विश्लेषण के लिए शहरवार औसत का उपयोग किया जाता है और इसे सभी स्टेशनों के औसत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
मुख्य निष्कर्ष:
राज्य में वायु गुणवत्ता निगरानी बुनियादी ढांचे के विस्तार से वायु गुणवत्ता के रुझानों के आकलन में सुधार हुआ है: राजस्थान के शहरों में वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क के विस्तार हेतु काफी प्रयास हुए हैं। 2022 में राज्य में 10 रीयलटाइम और 39 मैनुअल स्टेशन कार्यरत थे। 2023 की पहली छमाही में 32 नए रीयलटाइम और 18 नए मैनुअल स्टेशन चालू हो गए हैं, जिससे स्टेशनों की कुल संख्या 99 हो गयी है। ये स्टेशन 33 शहरों में फैले हुए हैं और अधिकांश स्टेशन, (30 मैनुअल और 15 रीयलटाइम) पांच गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों यानी अलवर, जयपुर, जोधपुर, कोटा और उदयपुर में स्थित हैं।
पार्टिकुलेट प्रदूषण के लिए मानक: राज्य में PM10 और PM2.5 दोनों ही चुनौती हैं। जोधपुर पांच गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में से सबसे अधिक प्रदूषित है, जहां पीएम2.5 का औसत 71 µg/m3 और PM10 का औसत 153 µg/m3 है। कोटा में यह औसत PM2.5 के लिए 55 µg/m3 और PM10 के लिए 105 µg/m3 है जो इसे राज्य का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित शहर बनाता है । जयपुर में PM2.5 स्तर 52 µg/m3 और PM10 स्तर 114 µg/m3 है और यह राज्य में तीसरे स्थान पर है। उदयपुर और अलवर भी प्रदूषित हैं और PM2.5 के लिए उनका 3-वर्ष का औसत 50 µg/m3 और 42 µg/m3 है। इन गैर-लक्ष्य प्राप्ति शहरों के लिए PM2.5 कटौती लक्ष्य 4 प्रतिशत और 43 प्रतिशत के बीच है। वहीँ PM10 के लिए कटौती लक्ष्य 30 प्रतिशत से 61 प्रतिशत के बीच है .
जयपुर, कोटा और उदयपुर में पार्टिकुलेट प्रदूषण बढ़ रहा है। 2022 का औसत स्तर कोरोना से पहले के स्तर को पार कर चुका है: जयपुर, कोटा और उदयपुर में PM2.5 और PM10 दोनों का स्तर बिगड़ रहा है। इन तीन शहरों में 2022 में पीएम 2.5 का स्तर 2019 में दर्ज स्तर से 14-18 प्रतिशत अधिक रहा है। इसी तरह 2022 में पीएम10 का स्तर 2019 के पीएम10 के स्तर से 11-16 फीसदी अधिक रहा है। अलवर में पीएम2.5 और पीएम10, दोनों में पिछले चार वर्षों में न्यूनतम परिवर्तन हुआ है। जोधपुर में पीएम2.5 और पीएम10 दोनों में 2019 के स्तर से क्रमश: 17 प्रतिशत और 9 प्रतिशत की गिरावट के साथ सुधार देखने को मिला है।
जयपुर, जोधपुर और उदयपुर में बढ़ रहा है NO2 प्रदूषण, 2022 का स्तर कोरोना से पहले के स्तर को पार कर चुका है: भले ही राजस्थान के शहरों में NO2 का स्तर नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी मानकों से कम है, फिर भी शहरों में प्रदूषण बढ़ रहा है। जयपुर, जोधपुर और उदयपुर में NO2 का स्तर बिगड़ रहा है। इन तीनों राज्यों में 2019 में दर्ज स्तर की तुलना में NO2 का स्तर 24-51 प्रतिशत अधिक रहा है। 2022 में जयपुर में हालात तब असाधारण रूप से चुनौतीपूर्ण गए जब NO2 वार्षिक स्तर को पार कर गया। अलवर और कोटा में रुझान स्थिर रहे हैं । गाड़ियों की बढ़ती संख्या हालात को और बिगाड़ सकती है।
NO2 प्रदूषण यातायात प्रवाह से प्रभावित होता है: सभी गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में NO2 सांद्रता ट्रैफिक से प्रभावित होती है और रश आवर के दौरान इसकी मात्रा सर्वाधिक देखी गयी है। एक दिन के दौरान NO2 सांद्रता दो बार चरम पर पहुँचती है - पहला सुबह 7-9 बजे के बीच और दूसरा शाम 7-9 बजे के बीच। शाम का स्तर जयपुर, जोधपुर, कोटा और उदयपुर में अधिक पाया गया है जबकि सुबह का स्तर अलवर में । यह मोटरीकरण के प्रभाव को दर्शाता है।
गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में ग्राउंड-लेवल ओजोन एक चुनौती के रूप में उभर रहा है, जोखिम का आकलन करने के लिए अधिक मजबूत निगरानी की आवश्यकता है: ग्राउंड लेवल ओजोन अत्यधिक विषैली होती है और कम समय के लिए भी इसके संपर्क में आना खतरनाक हो सकता है। स्थानीय स्थितियों में इसके निर्माण का आकलन करने के लिए अधिक सघन निगरानी की आवश्यकता है। 2022 तक, अलवर, जोधपुर, कोटा और उदयपुर में प्रत्येक में केवल एक और जयपुर में तीन निगरानी स्टेशन मौजूद थे। कई शहरों में ओजोन का स्तर इसके 8 घंटे के औसत मानक से अधिक देखा गया है और गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में जयपुर सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। ध्यान देने वाली बात है कि ओजोन सीधे किसी भी स्रोत से उत्सर्जित नहीं होती है। NO2, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक, कार्बन मोनोऑक्साइड और वाहनों और उद्योगों से निकलने वाली अन्य गैसें सूर्य के प्रकाश के प्रभाव में प्रतिक्रिया कर ओज़ोन का निर्माण करती हैं। यह अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है और अस्थमा और सांस की स्थिति से पीड़ित लोगों के लिए बेहद हानिकारक है। इसे काबू में लाने के लिए अन्य गैसों को नियंत्रित करना होगा।
गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में कार्बन मोनोऑक्साइड प्रदूषण भी एक चिंता का विषय है: कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) एक बहुत ही जहरीली गैस है जो से वाहनों, विशेषकर पेट्रोल वाहनों द्वारा उत्सर्जित होती है। 2022 तक अलवर, जोधपुर, कोटा और उदयपुर में केवल एक और जयपुर में तीन मॉनिटरिंग स्टेशन थे। कार्बन मोनोऑक्साइड की अधिकता के उदाहरण जयपुर में सबसे अधिक प्राप्त हुए हैं।
सर्दी के मौसम में प्रदूषण सभी गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में एक चुनौती है; जयपुर, जोधपुर और कोटा में गर्मी में भी प्रदूषण से छुटकारा नहीं : नवंबर के महीने के दौरान राजस्थान के गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों की शुरुआत एक समान पैटर्न में होती है। जयपुर और कोटा में प्रदूषण की तीव्रता अधिक है। अलवर और उदयपुर में वसंत में हवा की गुणवत्ता में सुधार होता है (खराब से मध्यम श्रेणी ) लेकिन जयपुर, जोधपुर और कोटा में गर्मियों में भी प्रदूषण बना रहता है। मानसून ही एकमात्र अवधि है जब गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में हवा की गुणवत्ता अच्छी हो जाती है।
छोटे शहरों और कस्बों में भी उच्च पीएम और एनओ2 प्रदूषण देखने को मिल रहा है: इस वर्ष की शुरुआत में राजस्थान के 24 छोटे शहरों और कस्बों ने पहली बार अपनी वायु गुणवत्ता की निगरानी शुरू की है। गर्मियों के उनके डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि उनमें से कई का मौसमी प्रदूषण स्तर गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों की तुलना में भी अधिक हो सकता है। इस गर्मी के मौसम (मार्च-मई) के दौरान, जोधपुर में पीएम10 का स्तर सबसे खराब था, जबकि कोटा में पीएम2.5 और गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में अलवर का एनओ2 स्तर सबसे खराब था। इसी अवधि के दौरान श्री गंगानगर में पीएम2.5 का स्तर 64 µg/m3 और PM10 का स्तर 258 µg/m3 दर्ज किया गया, जो सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों का लगभग दोगुना है। हनुमानगढ़, भिवाड़ी, चित्तौड़गढ़, भरतपुर और धौलपुर में भी सभी गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों की तुलना में पीएम2.5 का स्तर अधिक था। कई छोटे शहरों में भी NO2 का स्तर अधिक था - श्री गंगानगर, भिवाड़ी और दौसा का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। इन शहरों और कस्बों को भविष्य में वार्षिक रुझानों के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन की आवश्यकता होगी।
2023 की गर्मियों में गैर-लक्ष्य प्राप्ति और छोटे शहरों में जमीनी स्तर के ओजोन और सीओ की अधिकता देखी गई है - छोटे शहर अधिक प्रभावित हैं: इस गर्मी के मौसम (मार्च-मई, 2023) में गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों में जोधपुर गैसीय प्रदूषकों से सबसे अधिक प्रभावित रहा है। यहाँ ग्राउंड लेवल ओजोन के लिए 28 और सीओ के लिए 7 एक्ससीडेंस (मानकों से अधिक ) डे देखे गए। ग्राउंड-लेवल ओजोन के लिए 19 और सीओ के लिए 16 एक्ससीडेंस डेज़ के साथ कोटा दूसरा सबसे खराब हवा वाला शहर रहा है।
छोटे शहरों और कस्बों ने गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों की तुलना में बहुत खराब प्रदर्शन किया है। झुंझुनू में जमीनी स्तर ओजोन के लिए 84 एक्ससीडेंस डेज़ दर्ज किए; जोकि राज्य में सबसे बुरा है। बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, चूरू और बाड़मेर में जमीनी स्तर के ओजोन के लिए 50 से अधिक एक्ससीडेंस डेज़ दर्ज किए गए। दौसा सीओ प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है और यहां 64 एक्ससीडेंस डेज देखे गए।
राजस्थान में बहु-प्रदूषक संकट: राज्य में विभिन्न प्रदूषक सांद्रता के स्थानिक विश्लेषण से पता चलता है कि जमीनी स्तर के ओजोन का वितरण NO2, CO और PM के विपरीत है। शुरुआत के उत्तरी हिस्से पीएम और एनओ2 प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं जबकि दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से जमीनी स्तर के ओजोन के लिए हॉटस्पॉट हैं।
जमीनी स्तर के ओजोन और कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता वाले हॉटस्पॉट अलग हैं: जमीनी स्तर के ओजोन और सीओ की अनूठी रासायनिक संरचना के कारण एक ही समय में एक ही स्थान पर दोनों गैसों की सांद्रता बढ़ना लगभग असंभव है। यह दोनों गैसों के हॉटस्पॉट के स्थानिक वितरण से स्पष्ट होता है। इससे यह भी पता चलता है कि राज्य का कोई भी हिस्सा गैसीय प्रदूषण से मुक्त नहीं है, यदि जमीनी स्तर पर ओजोन प्रदूषण नहीं है तो CO का स्तर उच्च है।
जयपुर के भीतर प्रदूषण हॉटस्पॉट: मानसरोवर शहर में पीएम10 और जमीनी स्तर के ओजोन प्रदूषण के लिए हॉटस्पॉट है। पुलिस कमिश्नरेट में पीएम2.5 प्रदूषण सबसे अधिक है जबकि एनओ2 हॉटस्पॉट आदर्श नगर है। पुलिस आयुक्तालय ने भी इस गर्मी में सबसे अधिक CO एक्ससीडेंस डेज़ होने की सूचना दी।
जोधपुर के भीतर प्रदूषण हॉटस्पॉट: जोधपुर में पीएम 10 के लिए झालामंड हॉटस्पॉट है। कलेक्ट्रेट PM2.5, NO2 और CO प्रदूषण के लिए हॉटस्पॉट है। सम्राट अशोक उद्यान में चालू गर्मी के मौसम में जमीनी ओजोन के सर्वाधिक एक्ससीडेंस डेज़ देखे गए।
कोटा के भीतर प्रदूषण हॉटस्पॉट: धानमंडी कोटा में PM10 और NO2 के लिए हॉटस्पॉट है। श्रीनाथ पुरम PM2.5 के लिए हॉटस्पॉट है। नयापुरा में चालू गर्मी के मौसम में जमीनी ओजोन के सर्वाधिक एक्ससीडेंस डेज़ देखे गए।
आगे का रास्ता
जहाँ गैर-प्राप्ति वाले शहरों में पार्टिकुलेट प्रदूषण - PM10 और PM2.5 दोनों का स्तर बढ़ रहा है , NO2, ओजोन और CO सहित गैसीय प्रदूषकों में भी वृद्धि दर्ज की जा रही है। इससे राज्य में बहुप्रदूषक संकट पैदा हो सकता है। अतः पार्टिकुलेट प्रदूषण को कम करने के लिए व्यापक आक्रामक उपायों की आवश्यकता है, साथ ही स्रोतों से गैसीय उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए प्रारंभिक निवारक कार्रवाई भी ज़रूरी है। शहर और राज्य स्तर पर बहुक्षेत्रीय स्वच्छ वायु कार्य योजना के कार्यान्वयन को गति के साथ बढ़ाना आवश्यक है। गैर-लक्ष्य प्राप्ति वाले शहरों के लिए लिए स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं के साथ-साथ राज्य स्वच्छ वायु कार्य योजना पहले से ही चालू है। क्षेत्रीय लक्ष्यों को पूरा करने एवं क्षेत्रीय रणनीतियों को मजबूत करने के लिए इसमें और तेज़ी लाने की आवश्यकता होगी।
उद्योग, परिवहन, बिजली संयंत्रों और घरों में बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा अपनाये जाने की आवश्यकता है।
वाहनों के विद्युतीकरण को बढ़ाने और सार्वजनिक परिवहन, पैदल चलने और साइकिल चलाने को बढ़ावा देने के लिए राज्यव्यापी कार्रवाई।
अलग-अलग कचरे को इकट्ठा करने के लिए राज्य भर में बड़े पैमाने पर सर्कुलर अर्थव्यवस्था, रीसाइक्लिंग के लिए कचरे के सभी प्रकारों को इकठ्ठा करना और कचरे को जलाने से रोकने के लिए लिगेसी वेस्ट का उपयोग।
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