पीएम कुसुम योजना: समय पर लक्ष्य हासिल करने के लिए योजना में व्यापक बदलाव की जरूरत, सीएसई ने जारी की अध्ययन रिपोर्ट

  • पीएम कुसुम योजना ने अब तक अपने लक्ष्यों का केवल 30 प्रतिशत ही पूरा किया है; शेष लक्ष्यों को अपनी समय सीमा वर्ष 2026 तक प्राप्त करने के लिए इसके कार्यान्वयन की चुनौतियों का समाधान करना होगा।
  • योजना में कार्बन उत्सर्जन को 5.2 मिलियन टन तक कम करने की क्षमता है - लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि यह सफल हो।

वेबिनार की कार्यवाही और रिपोर्ट यहाँ देखें:

नई दिल्ली, 7 अगस्त, 2024: साल 2019 में शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा एवं उत्थान महाभियान (पीएम कुसुम योजना) का एक सराहनीय उद्देश्य है: भारत में कृषि को सौर ऊर्जा से जोड़ना, लेकिन छह वर्षों मेंइस योजना ने अपने लक्ष्यों का केवल लगभग 30 प्रतिशत ही हासिल किया है, जबकि इसकी समय-सीमा वर्ष 2026  तेजी से नजदीक आ रही है। ऐसे में सवाल उठता है किक्या यह लक्ष्य समय पर पूरा हो पाएगा? 

पीएम कुसुम योजना की जमीनी कार्यान्वयन पर किसानों की राय और आंकड़ों के विश्लेषण के बाद सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने एक अध्ययन रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में सीएसई ने एक रोडमैप पेश किया है, जो इस योजना के लक्ष्य को हासिल करने में मददगार हो सकती है। “पीएम कुसुमयोजना के कार्यान्वयन की चुनौतियां: चुनींदा राज्यों से केस स्टडीज” नामक यह रिपोर्ट आज सीएसई द्वारा आयोजित एक वेबिनार में जारी की गई।

वेबिनार में बोलते हुएसीएसईके औद्योगिक प्रदूषण और नवीकरणीय ऊर्जा के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव ने कहा: “हमारी रिपोर्ट हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्यों में सीएसई द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के निष्कर्ष बताती है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव के कारणकृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में टिकाऊ प्रथाओं में निवेश करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में, पीएम कुसुमजैसी योजनाएं भारत की जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ा सकती हैं - लेकिन केवल तभी जब उन्हें सावधानी और सतर्कता के साथ लागू किया जाए।”

पीएम कुसुम योजना को तीन घटकों में विभाजित किया गया है, जिसमें (ए) बंजर भूमि पर मिनी ग्रिड की स्थापना, (बी) पानी के डीजल पंपों को बदल कर ऑफ-ग्रिड सौर पंपों की स्थापना, और (सी) बिजली से चलने वाले पानी के मोटर पंपों को बदलने के लिए ऑन-ग्रिड सौर पंपों की स्थापना और कृषि फीडर सोलराइजेशन के लिए मिनी ग्रिड की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया गया है। अभी अधिकांश काम घटक बी के तहत हुआ है, जिसमें हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से हैं। घटक ए और सी में काफी कम काम हुआ है। 

सीएसई रिपोर्ट में पाया गया है कि जिन किसानों ने सौर जल पंपों का विकल्प चुना है, वे संतुष्ट हैं क्योंकि इससे उन्हें दिन में अपने खेतों की सिंचाई करने में मदद मिली है। हरियाणा के सोनीपत जिले के अटेरना गाँव से पीएम-कुसुम योजना के एक लाभार्थी कहते हैं: “सौर जल पंप ने खेती करना आसान बना दिया है, हमारी जमीन पर सोलर वाटर पंप लगने का मतलब है कि अब हमें बिजली कटौती के डर के बिना दिन में अपनी जमीन की सिंचाई करने की आजादी है।”

डीजल या बिजली के पंपों को छोड़ कर सौर ऊर्जा से चलने वाले पंपों को अपनाने वाले किसानों ने इसे लाभदायक पाया है, लेकिन केवल तभी जब उन्होंने जो पंप लगाए हैं वे सही आकार के हों। रिपोर्ट में कहा गया है कि हरियाणा के किसान, डीज़ल वाटर पंपों से सोलर पंप पर जाने के बाद प्रति वर्ष 55,000 रुपए तक बचा रहे हैं। 

इस योजना के कार्यान्वयन में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक किसानों के लिए सस्ती बिजली की उपलब्धता रही है। हालांकि, इस सस्ती बिजली का दूसरा पहलू भी है - इससे राज्य पर सब्सिडी का बोझ बढ़ जाता है। सस्ती बिजली के कारण किसान बिजली से चलने वाले पंपों को छोड़कर सोलर पंपों को अपनाने के प्रति उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। 

किसानों को अक्सर अपनी जमीन की जरूरत से बड़े आकार के पंप चुनने के लिए मजबूर होना पड़ता है। नोएडा में एनटीपीसी स्कूल ऑफ बिजनेस में ऊर्जा के प्रोफेसर और सीएसई वेबिनार के पैनलिस्ट डॉ देबजीत पालित के अनुसार, इस योजना को किसानों की आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए, ताकि यह उनके लिए आर्थिक रूप से व्यवहारिक साबित हो। डॉ पालित ने कहा: "यदि पंपों का आकार पूरे देश में एक समान रखने के बजाय विभिन्न इलाकों की भूमि के आकार और पानी की आवश्यकताओं पर आधारित होतो किसान अतिरिक्त खर्च से बच सकते हैं।" 

पीएम कुसुम योजना की एक और चुनौती कुछ राज्यों में कार्यान्वयन मॉडल से जुड़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में योजना के कार्यान्वयन की देखरेख पंजाब अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी द्वारा की जाती है, जबकि राजस्थान मेंयोजना के प्रत्येक घटक के लिए एक अलग कार्यान्वयन एजेंसी है। यादव का कहना है कि पीएम-कुसुम योजना की क्षमता को सही मायने में साकार करने के लिए एक विकेन्द्रीकृत मॉडल महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा,  "प्रत्येक घटक के बारे में जरूरी जानकारी रखने वाली राज्यों की कार्यान्वयन एजेंसियों को उन घटकों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए जो उनकी विशेषज्ञता के अंतर्गत हैं।" 

रिपोर्ट में सीएसई की ओर से आने वाले वर्षों में पीएम कुसुम योजना के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए निम्नलिखित उपायों की सिफारिश की गई है। 

विकेंद्रीकरण: एक विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन मॉडल की आवश्यकता है। किसानों की विशेषता और जरूरतों के बारे में जमीनी स्तर पर जानकारी रखने वाली कार्यान्वयन एजेंसियां ही ​​किसानों की जरूरतों को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम होती हैं।

  • वित्तीय व्यवहार्यता: किसानों को किश्तों में लागत का अग्रिम भुगतान करने का विकल्प मिलना चाहिए, ताकि योजना को उनके लिए वित्तीय रूप से अधिक व्यवहार्य बनाया जा सके।
  • केंद्रीय वित्तीय सहायता में वृद्धि: यह सहायता विभिन्न राज्यों की जरूरतों या सौर मॉड्यूल की कीमतों के अधीन बढ़ाई जा सकती है। कोविड-19 के बाद मॉड्यूल की कीमतों में वृद्धि हुई है, जिससे किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली अग्रिम लागत में भी वृद्धि हुई। 

अधिक जानकारीयासाक्षात्कार के लिए, सीएसई मीडिया रिसोर्स सेंटर की सुकन्या नायर से संपर्क करें: 8816818864, sukanya.nair@cseindia.org

 

 

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