भारत की नदियां खतरे में हैं। इन नदियों में न केवल सामान्य प्रदूषक बल्कि खतरनाक भारी धातुएं भी पहुंच रही हैं, जो स्वीकार्य सीमा से कहीं ज्यादा है। डाउन टू अर्थ ने अपनी एक जांच में देश भर की 81 नदियों में अत्यधिक भारी धातु सांद्रता का पता किया। डाउन टू अर्थ ने पाया कि नदियों पर बने 328 निगरानी स्टेशनों में से 141 में प्रदूषण की मात्रा सुरक्षित सीमा से काफी है।
जबकि अधिकांश राष्ट्रीय कार्यक्रम गंगा जैसी कुछ प्रमुख नदियों पर केंद्रित हैं, लेकिन बाकी अन्य सहायक नदियों और उप-सहायक नदियों में प्रदूषण को रोकने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है।
2025 महाकुंभ का वर्ष है और गंगा व इसकी कई सहायक नदियां त्यौहारों के इस महाकुंभ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन जब लाखों लोग पवित्र स्नान करेंगे तो हमारी नदियां कितनी सुरक्षित होंगी?
हिंदी पत्रकारों के लिए हमारे विशेष ऑनलाइन मंथन कार्यक्रम के इस संस्करण में हम अपनी नदियों की स्थिति पर गहराई से विचार विमर्श करेंगे।
कार्यशाला में शामिल होने की पात्रता :
कार्यशाला केवल उन पत्रकारों को आमंत्रित करती है जो हिंदी में लिखते और रिपोर्ट करते हैं।
विशेष सूचना : मंथन कार्यक्रम जूम पर होगा। कार्यशाला में सीमित सीटें हैं, इसलिए आपसे अनुरोध है कि तुरंत पंजीकरण करवा लें।
अधिक विवरण या यदि आपका कोई प्रश्न है तो कृपया संपर्क करें:
सुुकन्या नाायर
sukanya.nair@cseindia.org
8816818864
कार्यशाला के वक्ता | |
संचालक विवेक मिश्रा सीनियर रिपोर्टर, डाउन टू अर्थ |
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राजीव रंजन मिश्रा मुख्य सलाहकार, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स (एनआईयूए) |
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सुष्मिता सेनगुप्ता वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक, जल कार्यक्रम, सीएसई |
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कार्यशाला में शामिल होने वाले सभी प्रतिभागियों को सीएसई की ओर से प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। | |
पिछले मंथन | |
मंथन-10 | |
मंथन-9 | |
मंथन-8 | |
मंथन-7 | |
मंथन-6 | |
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मंथन-1 |
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