30 अप्रैल, रांची: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने आज कहा कि कहा “प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार सुनिश्चित करने के लिए भारत बहुत से आंदोलन और अभियानों का गवाह बना है। इन सभी आंदोलनों से कुछ न कुछ सीख मिलती है। पत्थरगड़ी आंदोलन भी हमें कुछ सीख देने की कोशिश कर रहा है और हम यहां उसे सुनने और समझने के लिए एकत्रित हुए हैं।”
सुनीता नारायण रांची में सीएसई द्वारा आयोजित “दूसरी लड़ाई” विषय पर बोलते हुए मीडिया और पब्लिक से मुखातिब हो रही थीं।
बैठक में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, सरकारी प्रतिनिधि और आम जनता शरीक हुई। इस बैठक में यह समझने की कोशिश की गई कि भारत में आदिवासियों के गढ़ में क्या हो रहा है।
झारखंड के कुछ आदिवासी गांवों ने प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए एक आंदोलन की शुरुआत की है। वे अपनी भूमि और जल संसाधनों पर आम सहमति से शासन कर रहे हैं। इस आंदोलन का आधार आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामसभा का संविधान प्रदत्त अधिकार है। आदिवासी एक पत्थर पर उसे अंकित कर रहे हैं और इसे पत्थरगड़ी का नाम दिया जा रहा है। इन पत्थरों पर अंकित किया जा रहा है कि बाहरी लोगों का ग्रामसभा की अनुमति के बिना गांव में प्रवेश निषेध है।
सीएसई की मदद से प्रकाशित होने वाली डाउन टू अर्थ मासिक हिंदी पत्रिका का इस बैठक में लोकार्पण किया गया। पत्रिका ने पत्थरगड़ी के आंदोलन को अप्रैल 2018 अंक में आवरण कथा के रूप में प्रकाशित किया है।
बैठक में झारखंड सरकार में पर्यटन सचिव एवं खूंटी जिले के पूर्व डीसी मनीष रंजन, गवर्नर के पूर्व मुख्य सचिव संतोष सतपती, झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के संजय बासु मलिक, आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच की दयामणि बरला, दैनिक भास्कर के पूर्व संपादक योगेश्वर दत्त, रायपुर में डेली छत्तीसगढ़ के चीफ एडिटर सुनील कुमार, रांची में प्रभात खबर के पूर्व संपादक मनोज प्रसाद और डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा वक्ता के रूप में शामिल हुए।
वक्ताओं ने बताया कि पत्थरगड़ी की परंपरा नई नहीं है। आदिवासी समुदाय सालों से इसे करते आ रहे हैं। उनके अनुसार, यह आंदोलन बताता है कि देश में आदिवासी समुदायों की स्थिति में सुधार के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं हुए हैं।
रिचर्ड महापात्रा ने कहा “यह संदेश देना कि आंदोलन देश के खिलाफ है, गलत होगा। भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आने वाले इन क्षेत्रों के लोगों का यह सांवैधानिक अधिकार है। इस आंदोलन के कारणों को ध्यान से देखने और समझने की जरूरत है, आदिवासियों की समस्याओं पर भी ध्यान देना होगा। डाउन टू अर्थ की स्टोरी में यह समझने की कोशिश की गई है।”
· किसी भी तरह ही मदद, साक्षात्कार आदि के लिए सीएसई मीडिया रिसोर्स सेंटर में वृंदा नागर से vrinda.nagar@cseindia.org / 9654106253 पर संपर्क करें।
Share this article