फिर बजी खतरे की घंटी पोल्ट्री फार्मों में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न केवल मरु्गियों को बीमारियों स बचान बल कि वजन बढ़ान के लिए भी किया जाता है।

September 05, 2017

हरियाणा के कावी गांव के किसान चांद सिंह कहते हैं कि वह नियमित रूप से मुर्गियों को एनरोसिन और कोलिस्टिन नामक एंटीबायोटिक्स देते हैं। कावी से करीब 150 किलोमीटर दूर सांपका गांव के एक अन्य किसान रामचंदर भी बताते हैं कि वह सिप्रोफ्लोक्सिसिन और एनरोफ्लोक्सिसिन एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करते हैं। बिना रोकटोक एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से एंटीबायोटिक रजिस्टेंट (एबीआर) बैक्टीरिया का उभार हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह बैक्टीरिया एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर मरता नहीं है यानी बीमारी का इलाज नहीं हो पाता। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) का ताजा अध्ययन बताता है कि पोल्ट्री फार्मों में उच्च स्तरीय एबीआर पाई गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, फार्म से निकले अशोधित कचरे का प्रयोग खेती में करने के कारण एबीआर पोल्ट्री फार्मों से बाहर भी फैल रहा है। सीएसई के उपमहानिदेशक चंद्र भूषण का कहना है कि जहां एक ओर पोल्ट्री फार्ममें एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ कचरे का प्रबंधन भी ठीक नहीं है। इन दो कारणों से पोल्ट्री फार्मों और उसके बाहर एबीआर फैल रहा है। उन्होंने बताया कि पर्यावरण में एबीआर का स्तर जानने के लिए यह अध्ययन किया।

अध्ययन के नतीजे सरकार के लिए खतरे की घंटी हो सकते हैं क्योंकि भारत में इस वक्त एबीआर को सीमित करने के लिए पर्याप्त कानून नहीं हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से पोल्ट्री अपशिष्ट प्रबंधन के लिए जारी निर्देश भी एबीआर की समस्या रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। पहले भी शोध एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल के साथ एबीआर के फैलाव की बात कह चुके हैं। फिर भी सरकार का इस तरफ ध्यान नहीं गया।

2014 में सीएसई के अध्ययन में भी चिकन मीट के नमूनों में बहुत से एंटीबायोटिक जैसे फ्लूरोक्यूनोलोंस (एनरोफ्लोक्सिसिन और सिप्रोफ्लोक्सिसिन) और टेट्रासाइक्लिन (ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोरोटेट्रासाइक्लिन, डॉक्सीसाइक्लिन) पाए गए थे।

 

Download report

0.61 MB

Total Downloads: 3382