विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि हाथ धोने और एक दूसरे से तय दूरी बनाए रखने से नए वायरस से बचा जा सकता है, लेकिन हाथ धोने के लिए क्या हमारे पास साफ पानी है?
दुनिया भर में 1.9 अरब लोग गंदा और गैर पीने योग्य पानी का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में, क्या बीमारियों से बचाव की रणनीति सही है?
नई दिल्ली, 21-22 मार्च, 2020: “विश्व जल दिवस के अवसर पर और ऐसे समय में जब पूरी दुनिया कोरोनोवायरस महामारी के खिलाफ लड़ रही है, हमारा मानना है कि यह बहुत ही उचित सवाल है कि क्या इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिए हमारे पास हाथ धोने के लिए साफ और पर्याप्त पानी है? यह सवाल सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार,हाथ धोने और एक दूसरे से पर्याप्त दूरी रखने से हम आसानी से इस नए वायरस को फैलने से रोक सकते हैं। भारत में इस विषय पर एक अभियान शुरू किया गया है, जिसमें सेलेब्रिटीज हाथ धोने के लिए जागरूक कर रहे हैं।
लेकिन ग्लोबल साउथ के राष्ट्र जैसे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरिबियन और भारत सहित एशिया, जिनमें निम्न और मध्य वाले वाले देश शामिल हैं की असल चिंता यह है कि उनके यहां हाथ धोने के लिए साफ व पर्याप्त पानी तक उपलब्ध नहीं है।
वर्तमान परिदृश्य में स्वच्छ जल और साबुन का उपयोग करके हाथ धोना एक महत्वपूर्ण निवारक उपाय है। सीएसई ने विश्लेषण किया है कि भारतीय संदर्भ में इसका क्या मायने है। सीएसई के वरिष्ठ निदेशक (जल और अपशिष्ट प्रबंधन) सुरेश रोहिल्ला के अनुसार डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित उपायों के अनुसार, रोगाणु-मुक्त हाथ पाने के लिए एक व्यक्ति को 30 से 40 सेकंड का समय लगता है। इसमें लगभग 4 लीटर पानी का उपयोग किया जाता है। इसमें नल के लगातार बहने पर 2 लीटर और स्क्रबिंग और रिन्सिंग का समय शामिल है। कोविड-19 के इन दिनों में प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन में कम से कम 10 बार हाथ धोने की जरूरत है तो मान लें कि पांच व्यक्तियों के परिवार को हर दिन सिर्फ हाथ धोने के लिए 100-200 लीटर की जरूरत होगी।
और अगर हाथ में साबुन मलते हुए नल खुला रहता है तो पानी की खपत और अधिक हो सकती है।
नारायण ने कहा, “एक और चिंता का विषय है – जब पानी का उपयोग बढ़ेगा तो उससे अपशिष्ट जल भी अधिक पैदा होगा। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एक घर में इस्तेमाल किए जाने वाले पानी का 85 से 90 फीसदी पानी अपशिष्ट के रूप में बहा दिया जाता है। यानी कि जितना ज्यादा पानी हम इस्तेमाल करते हैं, उतना ही अधिक पानी सीवेज में बहाया जाता है। यह बात भी हम जानते हैं कि हम सीवेज के पानी को ट्रीट नहीं कर रहे हैं, इसका मतलब है कि जल प्रदूषण की मात्रा बढ़ेगी, जिससे जल निकायों की चुनौती भी बढ़ जाएगी। ऐसे में, पानी में गंदगी बढ़ने की आशंका बढ़ेगी, जो हमारे स्वास्थ्य और खराब कर सकता है।
नारायण ने कहा कि ऐसे समय में हमें विश्व जल दिवस के मौके पर इस बात पर जोर देना चाहिए कि साफ पानी हमारा मौलिक अधिकार है। नारायण ने कहा कि अच्छी बात यह है कि पानी ऐसा संसाधन है, जिसे दोबारा से भरा जा सकता है। हमें पानी की हर बूंद का संचय करने, भूजल को रिचार्ज करने, जलाशयों का संरक्षण करने की आवश्यकता है। साथ ही, अपशिष्ट जल के ट्रीटमेंट और सफाई की जरूरत है। नारायण ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपनी नदियों को हम पानी लौटाएं और बर्बाद न करें।
नारायण के अनुसार, यह दशक हमारे लिए करो या मरो का है। एक ओर, जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रकृति हमसे बदला ले रही है, इसका मतलब है कि हम बारिश के पैटर्न में बदलाव का दौर देखेंगे, जिससे या तो बाढ़ आएगी या सूखा पड़ेगा। दूसरी ओर, यदि हम अपना जल प्रबंधन ढंग से नहीं करते हैं तो हमें भारी जल संकट और प्रदूषण का सामना करना पड़ेगा, जो हमारे जीवनयापन पर असर डालेगा और हमारे आर्थिक संकट को और बढ़ा देगा।
नारायण ने कहा, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि हम इसे ठीक कर सकते हैं । हमें पानी के प्रति बुद्धिमान होना पड़ेगा, अपने खानपान में बदलाव करना होगा, ताकि ऐसी फसल की बुआई कम की जा सके, जिनके लिए पानी अधिक चाहिए और अपने घर, फैक्ट्री और मैदानों में कम से कम पानी का इस्तेमाल करना सीखना होगा। आज, हम जानते हैं कि हमें क्या करना होगा। पानी के स्त्रोत पर ही सही से प्रबंधन को एक जुनून की हद तक लागू करना होगा।
नारायण ने कहा कि कोरोनावायरस महामारी ने हमें सिखाया है कि संक्रामक रोगों से निपटने में काफी कमजोर हैं। हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं हर किसी को मिले और कोई भी इससे छूट न पाए।
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